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राजस्थान चुनाव: जनता दल की अंतरगत टकराव और चुनौतियाँ

राजस्थान के सियासी मंच पर विधानसभा चुनाव की तरफ बढ़ते हुए असंख्य उठापटक और संघर्ष देखने को मिल रहे हैं। इसका प्रमुख कारण जनता दल सेक्युलर के केंद्रीय और प्रदेशीय इकाइयों में उत्थित हो रहे विचारधारा के अंतर हैं।

जनता दल सेक्युलर के प्रदेश अध्यक्ष अर्जुन देथा ने भाजपा की नीतियों का कड़ा विरोध किया। उन्होंने भाजपा को संविधान की अवहेलना, संविधानिक संस्थाओं को दुरुपयोग करने, और किसान तथा मजदूरों के अधिकारों का हनन करने का आरोप लगाया। उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत का स्थान दरिद्रता इंडेक्स में 107वां है, जिससे जनता की आर्थिक स्थिति पर सवाल उठता है।

देथा का मानना है कि भाजपा सरकार ने सामाजिक समरसता को तोड़ दिया है और वह निजी समूहों का संरक्षण कर रही है, जिससे अन्य राज्यों में तनाव बढ़ रहा है। उन्होंने भाजपा की नीतियों को खूनी और विस्फोटक माना है।

प्रदेश अध्यक्ष ने जनता दल सेक्युलर के केंद्रीय नेतृत्व को उनकी भाजपा संग मिलीभगती पर सवाल उठाने वाला आलोचना किया। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा जी को याद दिलाया कि जब भाजपा के संग गठबंधन बनाने का निर्णय लिया गया था, तब उन्होंने धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए अलग रास्ता चुना था।

राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना हर दल की प्राथमिकता होती है, लेकिन अधिकार की प्राप्ति के लिए सिद्धांतों का त्याग करना सही नहीं होता है। अर्जुन देथा ने जनता दल सेक्युलर के केंद्रीय नेतृत्व को उनके मूल सिद्धांतों पर पुनः ध्यान केंद्रित करने के लिए चुनौती दी है।

अब आगे यह देखना है कि इस आलोचना के बावजूद जनता दल सेक्युलर के केंद्रीय और प्रदेशीय इकाइयों के बीच में कितनी समझौता की जाती है और राजस्थान के विधानसभा चुनाव में कौन आगे आता है।